विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 11)
"स्वयं को इतना कष्ट क्यों दे रहे हो पुत्र!" दूर घने अंधेरे से आवाज आई। वहां दूर-दूर तक किसी प्राणी का कोई नामोनिशान तक न था। "अपनी नियति को स्वीकार करो। हमसे जुड़ जाओ पुत्र! हम इस पूरी दुनिया पर राज करेंगे।"
बेड़ियों में बंधा विस्तार यह सुनकर आक्रोश से भर गया। उसका हृदय व्याकुलता से उफ़न रहा था। उबलती हुई आँखे बाहर आने को बेकरार थी।
"हम इस दर्द को समझते हैं पुत्र! तुम विरोध करना छोड़ दो। यह संसार वैसा बिल्कुल नही है जैसा इसे तुम जानते हो।" अंधेरे से आवाज आई। चारों तरफ रिक्त स्थान था एक पतला मार्ग ऊपर की ओर उठता है आगे जा रहा था। दोनों ओर जलता हुआ लावा उमड़कर ऊपर ऊँचे रहा था, वहीं बीच में बेड़ियों से बंधा हुआ विस्तार कसमसा रहा था।लावे और क्रोध की भीषण गर्मी से उसका तन-बदन झुलस गया था। विस्तार का स्याह चेहरा जलते हुए शैतानी रूप धारण कर रहा था, उस लावे में यह सम्पूर्ण संसार जलता हुआ प्रतीत हो रहा था। चारो तरफ कंकालों के टुकड़े फैले हुए थे। जलते मांस की दुर्गंध से विस्तार का साँस लेना दूभर हो रहा था।
"हम इस दर्द को जानते हैं, विरोध करना छोड़ दो पुत्र!" अंधेरे से उभरे उस स्वर ने पुनः कहा। "यह मानव जाति इस धरती पर विचरण करने हेतु योग्य नही है। हम इस पूरी दुनिया पर राज्य करेंगे।" अंधेरे में दो बड़ी-बड़ी लाल आँखे दिखाई दीं। विस्तार उन आँखों से नही डरा पर कुछ न कर पाने के कारण कसमसाकर रह गया। उसकी त्वचा अब जलने लगी थी, विस्तार दर्द के मारे चीखने लगा था।
"अब विरोध करना छोड़ दो पुत्र! यही हमारी नियति है। मेरी सेवा करो बदले में मैं तुम्हें हर दर्द से मुक्ति दिला दूंगा।" उस भयंकर स्वर में पुत्र के लिए पिता का प्रेम झलक रहा था।
"दर्द! जानते भी तुम दर्द क्या होता है?" विस्तार चीख उठा। उसकी त्वचा भयंकर दुर्गंध मारते हुए जल रही थी। "तुम दर्द नही जानते। दर्द उससे पूछो जिसने तुम्हारे कारण अपने जन्म लेते ही अपने माता-पिता को खो दिया। दर्द उससे पूछो जिसने अपने ही हाथों अपने दोस्तों, अपने प्यार को मार दिया हो। दर्द उससे पूछो जिसने तुम्हारे कारण अपने विश्वास का खून होते देखा तुम दर्द नही जानते!" विस्तार की आँखों में शैतानी लपट फैल गयी। जोर से खिंचते ही बेड़िया टूट गयी। "तुम्हारे कारण मैंने आज अपना सबकुछ खो दिया, और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी सेवा करूँ? तुम्हारा साथ दूं?" विस्तार के सम्पूर्ण बदन में आग लग चुकी थी, आग में जलते हुए उसकी त्वचा पुनः निर्मित होना आरम्भ हो गयी थी। विस्तार किसी भूखे भेड़िये की भांति अंधेरे में उन चमकती लाल आंखों की ओर झपटा।
"दर्द तुम नही जानते।" विस्तार चीखा। उसकी बनाई बेड़िया बीच से टूट गयी, एक ओर से पेड़ ही उखड़ गया था। विस्तार की आँखों में स्याह लपटें जल उठी, वह अपने घुटनों के बल बैठ गया।
"तुम चाहें मेरे दिमाग में घुस जाओ या मुझे कुछ भी करके भड़का लो मैं दुबारा तुम्हारे नियंत्रण में नही आऊंगा। मैं दुबारा वो नही करूँगा। अहह.. शिल्पी! काश की मैं तुम सबको बचा पाता।" विस्तार अपने दोनों हाथों से सिर को जोर से दबाकर चीख रहा था। "पर मैंने ही तुम सबको मार डाला।" उसकी आँखों से आँसुओ की धार बह निकली।
"अब मैं अंधेरे की अधीनता स्वीकार नही कर सकता। परन्तु अपने अनुसार से शक्ति प्रयोग करते ही मैं इतना कमजोर हो जाता हूँ कि अंधेरा मुझपर हावी हो जाता है। मुझे इसका उपचार ढूंढना ही होगा।" कहते हुए विस्तार वहां से पहाड़ी की दिशा में उड़ गया, उसकी बनाई बेड़िया अब गायब हो चुकी थी।
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दोपहर में।
माणा गांव के सभी सदस्य अपने परिवार एवं जरूरी सामाग्री के साथ गांव की सभा में एकत्रित थे। कल की भयंकर आँधी के कारण हुई तबाही आज भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। कुछ लोग अब भी इधर की ओर ही आ रहा थे, सभी के चेहरे लटके हुए थे। कुछ जरूरी सामान लेकर बाकी यहीं एक जगह एकत्रित कर रखा गया था।
"साथियों इस साल ये आवृष्टियां समय से पूर्व ही बहुत शक्तिशाली होकर आ गई हैं, जिस कारण हम सबको पड़ोस के गांव में शरण लेनी होगी।" मुखिया जी सबसे मुखातिब होकर बोले।
"अगर सब लोग आ गए हों तो अब निकला जाए मुखिया जी।" अपने सामान को उठाते हुए एक अधेड़ व्यक्ति बोला।
"अपने परिवार और पड़ोसियों के साथ ही चलना! अब देर करने का कोई औचित्य नही है।" कहते हुए मुखिया जी आगे आगे चलने लगे। दूसरा गांव यहां से कुछ ही दूरी पर था।
सभी लोग अभी पहाड़ी के रास्ते होते हुए शांति से जा रहे थे। अभी कल की घटना से कोई नही उबर पाया था परन्तु आज की ठंडी कल से सामान्य थी। आशु-आँचल अपने माँ-बाबा और छोटे भाई के साथ चल रही थीं, परन्तु उनके पांव चलने से ज्यादा मन में विचार चल रहे थे।
"दीदी तुमने कहा यह घटना प्राकृतिक नही है फिर यही बात यहां सभा मे गांववालों के सामने क्यों बोली?" आशु बड़े मासूमियत से पूछी।
"क्योंकि मैं नही चाहती कोई इस खबर से बेवजह डर जाए। मेरा प्रयोग गलत भी सिद्ध हो सकता है।" आँचल गम्भीर स्वर में बोली।
"मैं तो बस इसलिए परेशान थी कि भैया नही आया पर अब तो यहां की खबर, न्यूज़ की हेडलाइन बन गयी होगी अब तक तो सबको इसका पता चल गया होगा फिर हमें यहां से निकालने के लिए लोग आते होंगे?" आशु, आँचल के चेहरे को ताकते हुए बोली।
"हो सकता है और नही भी। तुम परेशान मत हो जल्दी-जल्दी से अपना कदम बढ़ाओ।" आँचल ने उसे आगे की ओर हल्का सा धक्का दिया।
"अरे चल रही हूँ न दीदी। अब मेरे दिमाग में सस्पेंस बना रहता है तो मैं क्या करूँ?" अपने लंबे काले बाल पकड़कर खींचते हुए आशु बोली। "और ये लोग भी तो इतना धीरे चल रहे है।" आशु ने रूठने के अंदाज में कहा।
"हाँ मैं जानती हूँ मेरी निठल्ली बहन।" आँचल धीरे से हंसते हुए बोली। सभी लोग अलग अलग बातें कर रहे थे, कोई कुछ, कोई और कुछ बस सबको किसी तरह अपनी बात सिद्ध करने की पड़ी थी। मुखिया जी आगे आगे अपने चार भरपूर बदन के पहलवान साथियों के साथ चल रहे थे, ताकि पहाड़ी मुसीबतों का सामना कर सकें। थोड़ी दूर आगे एक घाटी थी, जिसमें थोड़ी सी मात्रा में जल पहाड़ से नीचे की ओर बह रहा था। इस प्राकृतिक नाले के दूसरी ओर कुछ लोग दिखाई दे रहे थे।
अंधेरा फिर से हावी होने लगा। बादल घुमड़ने लगे, बिजली जोरदार आवाज में कड़कने के साथ ही पास के एक पेड़ पर आ गिरी। सभी बेहद सावधान थे इसलिए किसी को कोई नुकसान नही हुआ। अचानक अंधेरा छा जाने से सबकी चिंता गहराने लगी। मुखिया ने सबको एक साथ रहने की हिदायत दी, दूसरी ओर से कुछ लोग इधर ही बढ़ते आ रहे थे। गांव वाले कुछ मशालें जलाकर प्रकाश करते हुए आगे बढ़े। दूसरी ओर भी उन्हें मशालें जलती दिखाई दीं, जिससे स्पष्ट हो गया कि कुछ लोग वहां पर अवश्य हैं।
"लगता है कोई हमारी मदद करने आ रहा है, सब एक दूसरे के साथ रहना, कोई छूट मत जाना।" मुखिया जी पूरी ताक़त से चिल्लाकर कहते हैं इस बात को दोहराते हुए गांव के बच्चों ने नारेबाजी करते हुए भीड़ के पीछे तक पहुँचा दिया।
अचानक ही अंधेरा और अधिक गहराता गया, वातावरण में अजीब सी गन्ध फैलने लगी। एक विशाल सूखा पेड़ तने से टूटकर तेज आवाज करते हुए मुखिया जी पर गिरने वाला था। एक बलिष्ठ युवक ने मुखिया जी को बड़ी फुर्ती से वहां से हटाया परन्तु स्वयं को न बचा सका। पेड़ तेरी से उछलकर सरकता हुआ वहां से नीचे चला गया, जिस युवक ने मुखिया को बचाने की कोशिश की थी पेड़ का टूटा हुआ तना उसके सीने में जा धंसा वह जोर की चीख के साथ वहीं निढाल हो गया, एक-दो लोग उसकी नुकीली डालों के संपर्क में आये, पेड़ पूरी तरह सूखा हुआ था इसलिए उसने अपने सम्पर्क में आने वालों को नोंच लिया। अन्य कईयों को भी इसमें काफी गहरी चोटें आई थी, सभी अपने लिए एक मजबूत डंडे का व्यवस्था करने लगे ताकि इस प्रकार की घटना से स्वयं को बचा सकें। मुखिया की अभी अभी जान जाने से बची थी, वो और तेज कदमों से घाटी की ओर बढ़ने लगे। उनके साथ सभी उस नाले की ओर घाटी में बढ़ने लगे, दूसरी ओर से मशालों की हल्की-हल्की रोशनी आ रही थी।
बादल फिर जोर से गरजा। एक क्षण को प्रतीत हुआ मानो धरती ही हिल गयी, बारिश की बड़ी बड़ी बूंदे धरती पर गिरने लगी, जिसके कारण जल रहीं मशालें बुझ गई थी, एक बार फिर चारों ओर घना अंधेरा छा गया सभी बस अनुमान लगाकर एक ओर बढ़ने लगे। तभी खड़-खट्ट की आवाजों का शोर उठा, ऐसा प्रतीत हुआ मानो पहाड़ टूट रहा हो, न जाने कितने पत्थर नीचे की ओर रेस लगा दिए, पत्थरों की आवाज और तेज होती जा रही थी, अचानक एक पत्थर उछलते हुए लोगो के सिर के ऊपर से पार गया, यह पत्थर करीब छः फुट से अधिक ऊचां था। उसके बाद तो फिर जैसे इन लहू के प्यासे पत्थरों की बरसात हो गयी। लोगो ने पत्थरो से बचने के लिए पेड़ो की ओट ले ली। हालांकि पेड़ भी कब गिर जाए इसका कोई पता नही था परन्तु ऐसी घटना पहले कभी नही होती थी इसलिगे यह सब इन लोगो के भी होश उड़ा देने वाला था। कई बड़े नुकीले पत्थर तेजी से लुढ़कते हुए नीचे की ओर जाने लगे। गांव के बहुत से लोग इन पत्थरों के शिकार हो गए, उनकी चीखों के शोर से यह पहाड़ दहल गया। तीव्र गति से लुढ़ककर गिरता हुआ एक पत्थर एक मासूम बच्ची को लगने वाला था, उसके बाबा ने उसे बचाने की कोशिश की परन्तु इस क्रिया में वे दोनों ही बुरी तरह कुचले गये, चारों तरफ रुदन मच गया। सब बद्रीनाथ से प्रार्थना करने लगे परन्तु यह सब शांत होने के नाम नही ले रहा था, बिजली के कड़कने के समय प्रकाश में अनगिनत विक्षिप्त कुचली हुई लाशें दिख रही थी। यह देखकर आशु ने जोर से चीखना चाहा, मगर उसकी आवाज गले मे ही अटकी रह गयी उसने देखा वहां सिर्फ वो तीनो भाई-बहन और उसकी माँ थे, उसके बाबा उस पेड़ के पीछे खड़े नही थे। नीचे गांव में घरों के टूटने की स्वर आ रहे थे। बिजली पुनः कड़की, रक्तपिपासु पत्थर अब भी लुढ़कते हुए नीचे की ओर जा रहे थे, आशु के बाबा किसी बच्चे को बचाकर गोदी में उठाये हुए अपने परिवार की ओर आ रहे थे, अचानक एक पत्थर उनके सामने तेजी से आ गया, उन्होंने उस बच्चे को एक ओर फेंक दिया परन्तु स्वयं को उस पत्थर से न बचा सके। वह पत्थर उनको कुचलते हुए चला गया। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कड़ाहट में पत्थरों और चीखों का शोर भी शामिल हो चुका था।उस रास्ते पर अब चारों ओर दबी-कुचली लाशें मात्र थी, कुछ लोग जो घायल थे उनकी चीखों से यह पर्वत कांप रहा था। कुछ का शरीर दो हिस्सों में बंट चुका था, किसी की आंखे एक ओर निकलकर लटकी हुई थी। किसी का सिर बिल्कुल चपटा हो गया था, किसी की लंबी चीभ निकली हुई थी, कोई पत्थर इतना नुकीला था कि सीने को बीच से चीर दिया था। जो बच गए थे उनकी हालत मृत्यु से भी अधिक बदतर थी। ये प्रकृति इतनी निर्मम है कि स्त्री-पुरूष किसी में भेद नही करती। यह दृश्य देखने वालों का रोम रोम भय से सिहर गया। पत्थरों की यह बरसात अब भी नही रुकी हुई थी, परन्तु इन पत्थरों का आकार पहले से कुछ छोटा था। उस पत्थर से टक्कर खाकर गजेंद्र नीचे की ओर गिरते जा रहे थे, उसके हाथ एक जड़ लगी जिसे वह दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया। एक पत्थर उसके बिल्कुल बगल से गुजर गया, गजेंद्र का रोम-रोम कांप गया। उधर रवि, आशु और आँचल अपने बाबा को गिरते देखकर जोर से रोने लगे, उनकी माँ किसी तरह स्वयं पर संयम रख उन तीनों को शांत करने की कोशिश करने लगीं।
"बाबा! बाबा!" आशु जोर से चीखी।
"मैं ठीक हूँ!" घाटी से गजेंद्र चीखते हुए बोला, जो एक जड़ को पकड़कर लटके हुए थे। "तुम लोग अपना ध्यान रखो।" अचानक एक पत्थर उनके मुँह पर आ लगा और उनके हाथ से वह जड़ छूट गयी। वह तेजी से गहरे अंधेरी घाटी में गिरने लगा। एक बार फिर चीखों से यह पहाड़ थर्रा गया, जो लोग अभी सुरक्षित थे वे अपने प्रियजनों की मृत्यु पर शोक प्रकट कर रहे थे, कुछ लोग चीख-चीखकर रो रहे थे। ऐसी घटना आजतक किसी ने देखी सुनी नही थी, अब पत्थरों की बरसात रुक चुकी थी, परन्तु अंधेरा अब भी गहरा होता जा रहा था, लोगो ने किसी तरह मशाल जलाने की कोशिश की ताकि अपने परिवार के सदस्यों को पहचानकर अंतिम संस्कार कर सकें परन्तु एक भी मशाल न जली। जो शेष बचे थे उन सभी को उन दबी कुचली लाशों के ऊपर से गुजरकर आगे बढ़ना पड़ा।
लोगो में डर बढ़ता ही जा रहा था, अब कुछ ही लोग बचे थे। बहुत से लोग घाटी में उतर गए थे बहुत से लोग पेड़ो पर शरण ले लिए थे परंतु इतना तय था कि पत्थरों की इस बरसात ने माणा को बुरी तरह नष्ट कर दिया होगा। जान तो तब भी नही बचती, किसी तरह अपने आप को संभालते हुए लोग दिलों पर पत्थर रखकर वहां से आगे बढ़ने लगे, अब भी चारों ओर कोलाहल मचा हुआ था, जो घायल थे उनके जिंदा बचने की कोई उम्मीद न थी इसलिए मुखिया जी ने जो ठीक हालात में हैं उनके साथ आगे बढ़ना ठीक समझा।
घाटी के उस ओर कई मशालें जल रही थी, जो शायद इन लोगो के इंतजार में ही थे, सभी जल्दी जल्दी घाटी में उतरकर नाले को पार करने लगे। सबका हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था, इस हृदय विदारक घटना ने सबको अंदर से तोड़कर रख दिया था। घाटी चढ़ते ही वे उस पार थे जहां कुछ लोग मशालें लिए हुए उनका इंतजार कर रहे थे।
अचानक किसी के मन में ये ख्याल आया कि जब इन लोगो की मशालें नही जलीं तो इतनी बरसात में भी घाटी के इस पार वाले लोगो की मशालें क्यों नही बुझी? जबकि बारिश के निशान यहाँ भी मौजूद हैं! इस प्रश्न ने सबको अंदर से झकझोर कर रख दिया, डर के मारे सबकी कंपकपी बन्ध गयी थी, फिर भी धीरे धीरे आगे बढ़ते रहे क्योंकि किसी को भीपुनः उसी राह पर वापस जाकर काल का ग्रास बनना स्वीकार न था। घाटी के ऊपर अब भी कई मशालें जल रही थीं जैसे ही मुखिया ने यह दृश्य देखा उसकी आंखें फैल गयी, मुख से कोई स्वर न निकला। जब सबने मुखिया की यह हालत देखी तो वे मन में जिज्ञासा लिए आगे बढ़े परन्तु जैसे ही उन्होंने उस दृश्य को देखा उनकी हालत मुखिया से भी अधिक खराब हो गयी।
वहां कोई मशाल नही थी, वहां कुछ विचित्र लोग थे जिनके सिर जल रहे थे। वे जलती हुई खोपड़ी वाले लोग, जो शायद इन्ही का इंतज़ार कर रहे थे। उनके सिर में मशालों के समान आग लगी हुई थी, आंखे काली चमक रही थी।
क्रमशः….
Kaushalya Rani
25-Nov-2021 10:10 PM
Nice part
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Farhat
25-Nov-2021 06:31 PM
Good
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Barsha🖤👑
25-Nov-2021 06:14 PM
बहुत ही खूबसूरत लिखते हैं आप सर
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